ब्यास नदी की सहायक नदी उहल पर बनी 110 मेगावाट शानन हाइडल पावर प्रोजेक्ट को लेकर हिमाचल प्रदेश और पंजाब के बीच चल रही कानूनी लड़ाई ने एक नया मोड़ आ गया है। हरियाणा ने भी इस मामले में पक्ष बनने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दायर कर दिया है। हिमाचल प्रदेश और पंजाब दोनों ही इस परियोजना पर पहले ही अपना दावा कर रहे हैं, जिसके बाद हिमाचल प्रदेश ने शानन परियोजना में हिस्सेदारी का दावा करने के हरियाणा के कदम का विरोध करने का फैसला किया है।
हिमाचल प्रदेश का कहना है, यह पंजाब और हिमाचल प्रदेश के बीच एक मुख्य मुद्दा है। बताया जा रहा है, पंजाब भी हरियाणा के आवेदन का विरोध करेगा। हिमाचल प्रदेश अगली सुनवाई की तारीख 15 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में अपनी आपत्ति दर्ज कराएगा। प्रारंभ में 48 मेगावाट की परियोजना के रूप में शुरू की गई शानन जल विद्युत परियोजना की क्षमता को बाद में 60 मेगावाट तक बढ़ा दिया गया तथा बढ़ती बिजली की मांग को पूरा करने के लिए पंजाब द्वारा अंततः 110 मेगावाट तक बढ़ा दिया गया।
1. हरियाणा ने अपने दावे में दो बड़ी वजहों का तर्क दिया है। हरियाणा का कहना है ब्यास की सहायक नदी उहल नदी पर स्थित शानन परियोजना भी भाखड़ा बांध को पानी देती है। चूंकि हरियाणा की भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) में हिस्सेदारी है, इसलिए उसका तर्क है कि परियोजना पर उसका वैध दावा है।
2. हरियाणा के सुप्रीम कोर्ट में किए गए अपने आवेदन में पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 का भी हवाला दिया गया है, जिसमें अविभाजित पंजाब राज्य के हिस्से के रूप में उसके ऐतिहासिक संबंध पर जोर दिया गया है।
1932 में शुरू की गई शानन हाइडल परियोजना हिमाचल प्रदेश के जोगिंदरनगर में स्थित है। इस परियोजना के लिए 99 साल का पट्टा 1925 में मंडी रियासत के तत्कालीन शासक जोगेंद्र सेन बहादुर और अविभाजित पंजाब सरकार के मुख्य अभियंता कर्नल बीसी बैटी के बीच हस्ताक्षरित किया गया था। समझौते के तहत परियोजना को मंडी के लिए 500 किलोवाट मुफ्त बिजली के बदले उहल नदी से पानी का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी।
2 मार्च, 2024 को पट्टे की अवधि समाप्त हो गई। एक दिन पहले, केंद्र सरकार ने निर्बाध संचालन सुनिश्चित करने के लिए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश जारी किया। तब तक, पंजाब ने हिमाचल प्रदेश को परियोजना को अपने हाथ में लेने से रोकने के लिए पहले ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया दिया था।
जबकि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुखू ने लगातार तर्क दिया है कि 99 साल के पट्टे की समाप्ति के साथ ही पंजाब का दावा समाप्त हो गया।
20 सितंबर को हिमाचल प्रदेश ने पंजाब के दीवानी मुकदमे को खारिज करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। राज्य ने तर्क दिया कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 7, नियम 11 के तहत कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए पहले उसके मामले की सुनवाई होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 23 सितंबर को पंजाब को नोटिस जारी किया, जिस पर बाद में पंजाब ने हिमाचल प्रदेश के दावे का विरोध करते हुए जवाब दाखिल किया।
हिमाचल प्रदेश ने अपने आवेदन में कहा: "पंजाब के मामले का पूरा आधार संविधान-पूर्व संधि या समझौते से उत्पन्न विवाद से संबंधित है। संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत इस तरह के विवाद इस माननीय न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं। ब्रिटिश सरकार और मंडी के राजा के बीच 1925 का समझौता विवाद का आधार है।" इसने आगे कहा, "मंडी राज्य कभी भी पंजाब का हिस्सा नहीं था। यह 1948 में स्वतंत्र भारत में विलीन हो गया और 1951 में पार्ट सी राज्य बन गया। हिमाचल प्रदेश को बाद में 1956 में केंद्र शासित प्रदेश और 1971 में पूर्ण राज्य घोषित किया गया। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत पंजाब के पास कार्रवाई का कोई कारण नहीं है।"
पंजाब ने अपने सिविल मुकदमे में तर्क दिया, “पंजाब सरकार हिमाचल प्रदेश सरकार को शानन पावर हाउस परियोजना के वैध कब्जे और कामकाज में बाधा डालने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा चाहती है।” पंजाब ने दावा किया कि पंजाब राज्य विद्युत निगम लिमिटेड (पूर्व में पंजाब राज्य विद्युत बोर्ड) द्वारा प्रबंधित यह परियोजना उसे पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत 1967 की केंद्रीय अधिसूचना के माध्यम से आवंटित की गई थी। इसने यथास्थिति बनाए रखने के लिए एक अस्थायी निषेधाज्ञा भी मांगी है।
110 मेगावाट के पावर प्रोजेक्ट पर 3 राज्य आमने-सामने:99 साल के पट्टे का टाइम पूरा; केंद्र यथा स्थिति बनाने को कह चुका, अब सुप्रीम कोर्ट में मामला
0 Comments