बोले- पुराना फॉर्मूला गलत, 0 नंबर वाले भी पास किए; प्राइवेट स्कूलों को बताया 'दुकान'
हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड (HBSE) द्वारा शुक्रवार को घोषित किया गया 10वीं का रिजल्ट, पिछले साल के मुकाबले 2.73% कम रहा। जहां साल 2024 में 10वीं का रिजल्ट 95.22% था। वहीं, इस साल रिजल्ट घटकर 92.49% हो गया।
लेकिन आखिर ये रिजल्ट प्रतिशत कम कैसे हो गया, ये जानने के लिए दैनिक भास्कर ने बोर्ड के चेयरमैन डॉ. पवन कुमार शर्मा से बातचीत की। इस दौरान पवन शर्मा ने कई अहम खुलासे किए। सबसे पहले तो उन्होंने माना की जो फॉर्मूला बोर्ड ने पिछले साल अपनाया था वो गलत था, जिसके कारण 0 नंबर वाले बच्चे भी पास हो गए।
इसके साथ ही उन्होंने फीस के तौर पर मोटी-मोटी रकम वसूलने वाले प्राइवेट स्कूलों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि ऐसे स्कूलों को स्कूल नहीं बल्कि दुकान कहना चाहिए, जो फीस में तो मोटी-मोटी रकम लेते हैं लेकिन रिजल्ट 0 प्रतिशत रहता है।
2024 के मुकाबले रिजल्ट प्रतिशत कम रहा, उसका क्या कारण मानते हैं?
2023 में परिणाम 65.43% था। लेकिन 2024 में ये 95.22 % हो गया था। रिजल्ट 95.22 % होने का सबसे बड़ा कारण था कि जीरो नंबर प्राप्त करने वाले बच्चों को भी पास कर दिया गया था। जोकि तत्कालीन प्रशासनिक या उच्च अधिकारियों की कहीं-ना-कहीं लापरवाही रही है।
उनका फॉर्मूला था कि इंटरनल एसेसमेंट व प्रैक्टिकल में मिलाकर जो बच्चा पास उसे पास समझा जाए। वह फॉर्मूला गलत लगाया था।
0 नंबर देकर जिन बच्चों को पिछले साल पास किया गया, उनके भविष्य पर अब बुरा असर पड़ेगा, इसे कैसे देखते हैं?
बिल्कुल, नकारात्मक असर पड़ेगा। हम सभी जानते हैं कि जब एक परीक्षार्थी इस प्रकार की मार्कशीट लेकर कहीं जाता है, जहां उसके थ्योरी पोर्टल में 0 नंबर दिखाए जाते हैं। तो ऐसे में ना सिर्फ उस बच्चे का नुकसान होगा बल्कि इससे बोर्ड की छवि पर भी असर पड़ता है। इसलिए हमने इस बार सुनिश्चित किया है कि ये गलतियां दोबारा ना होने पाएं।
प्राइवेट स्कूल मोटी फीस लेते हैं और फिर परीक्षा परिणाम 0 प्रतिशत आता है, इसका असर पेरेंट्स की जेब व बच्चों के भविष्य पर पड़ता है। इसे कैसे देखते हैं?
देखिए मुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री इसी बात को लेकर गंभीर हैं। ये ना केवल फीस ज्यादा लेते हैं, बल्कि पुस्तकें भी अलग-अलग प्रकार की लगाते हैं। उनका भी काफी बोझ पेरेंट्स पर पड़ता है। इसके अलावा गुणात्मक शिक्षा भी नहीं देते हैं।
वास्तव में इस प्रकार के जो स्कूल हैं, उनको स्कूल ना कहकर दुकान कहना चाहिए। और ये दुकानें जो बन गईं है, उन पर जरूर एक्शन लेना चाहिए।
हां अगर सरकारी स्कूल में भी इस तरह की परिस्थिति है तो उसके लिए वहां का सब्जेक्ट टीचर पूरी तरह से जिम्मेदार है। ऐसे टीचरों पर भी मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार आवश्यक कार्रवाई चल रही है।
स्कूलों के अलावा एकेडमी भी चल रही हैं। अवैध एकेडमियों को बंद करने के निर्देश सरकार ने दिए थे। उसका क्या असर पड़ता है?
यह जो एकेडमी सिस्टम होता है। जब स्कूल में कहीं-ना-कहीं बच्चे की पढ़ाई में कमी रहती है तो बच्चे को विकल्प देखना व सोचना पड़ता है। लेकिन इन पर एक्शन की बात है तो यह शिक्षा निदेशालय स्तर का विषय है।
बोर्ड द्वारा बेहतर शिक्षा के लिए आगे क्या कदम उठाए जाएंगे?
बेहतर शिक्षा के लिए सबसे पहला कदम यह होना चाहिए कि स्कूल का वातावरण इको-फ्रेंडली होना चाहिए। मतलब स्कूल में आने के लिए बच्चे में जोश व खुशी होनी चाहिए।
वह वहां एक बोझ या जबरदस्ती से आना ना समझे। जब तक शिक्षण संस्थान में एक अच्छा वातावरण नहीं होगा, तब तक बच्चे की साइकॉलोजी हम ऐसी नहीं बना सकते, जिसमें वह कुछ सीख सके। जब तक दिमाग में एक संतुष्टि व भयरहित परिस्थिति नहीं होगी, तब तक कुछ सीखा नहीं जा सकता और ना ही कोई काम अच्छे ढंग से किया जा सकता।
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