अमेरिका दक्षिण एशिया में नया ठिकाना ढूंढ रहा है। भारत और पाकिस्तान दोनों उसके हाथ से फिसलकर चीन के साथ हैं। नेपाल सुलग रहा है। कई सवालों के साथ! कई संकेत देते हुए।
आंदोलनकारी चीन समर्थक और भारत समर्थक दोनों तरह के नेताओं को पीट रहे हैं। वे बलेंद्र शाह को मेयर बनाने की बात कह रहे हैं, जो बिना किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल हुए तीन साल पहले काठमांडू का मेयर चुनाव जीता। बलेंद्र शिक्षा से स्ट्रक्चरल इंजीनियर हैं तो पेशे कलाकार है। उसने अमेरिकी हिप हॉप को नेपाल में लोकप्रिय बनाया तथा नेपाली हिप-हॉप का किंग कहलाता है।
अमेरिका 1995 से ही चीन की बिल्डिंग कर रहा है। इसलिए भारत से संबंध सुधारने गये। लड़ाकू विमानों के ईंधन लेने और उड़ान सुविधा मुहैया कराने का भी समझौता हुआ।
मगर मोदी ने सत्ता में आते ही चीन के साथ गलबहियां डालीं तो अमेरिकी खुफिया एजैंसियां सतर्क हो गईं। मोदी ने डिजिटल इंडिया का नारा देकर जब पूरे भारत में चीनी गैजेट्स का जाल बिछवा दिया तो अमेरिका को अपने सर्विलांस की चिंता हुई। 2016 में जब जिनपिंग ने नेपाल की ओर हाथ बढ़ाया और नेपाल को भारत से दूर किया तब अमेरिका ने नेपाल में चीन को रोकने का मिशन शुरू किया। 2018 में नेपाल की आर्थिक मदद और नेपालियों को अमेरिकी वीजा में प्राथमिकता देनी शुरू की। चीन नेपाल में खुलकर खेल रहा था और अपनी कठपुतली केपी ओली और प्रचंड की सरकार बनवा रहा था। अमेरिका उन्हें गिरवा रहा था।
मगर पिछले साल एक अलग खेल हो गया। चीन समर्थक ओली और भारत समर्थक नेपाल कांग्रेस ने सरकार बना ली। यानी भारत और चीन की मैत्री नेपाल में पिछले साल ही हो गई थी। बस इसे मोदी और जिनपिंग की दोस्ती में प्रकट करना बाकी था, जो गलवान की पृष्ठभूमि में भारत के लिए स्वीकार्य नहीं था। ट्रम्प के टैरिफ ने वह बहाना भी दे दिया। इस तरह अमेरिका ने उस उजागर दिया जो जिनपिंग और मोदी के बीच गुपचुप दोस्ताना चल रहा था।
अमेरिका का फंडा क्लियर है भारत ने सही, पाक ने सही चीन के लिए नेपाल की जमीन ही काफी है।
नेपाल के आंदोलनकारियों को जेन-जी कहा जा रहा है। यह नाम 2019 में गूगल ट्रेंड में चला था और उसी साल बाद में बेवस्टर और ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने इसे नये शब्द के रूप में शामिल करने की घोषणा की।
यह थोड़ा अजीब है कि नेपाल में हो रहे आंदोलन का नाम अमेरिकी कल्चर से निकला है। यह कांचा आंदोलन नहीं है। यह जेन-जी आंदोलन के नाम से जाना जा रहा है।
नेपाल की नई सरकार के प्रमुख को अमेरिका यात्रा का न्यौता मिले तो आश्चर्य मत करना। मोदी ने चीन का पिछलग्गू बनकर दक्षिण एशिया के सारे समीकरण बिगाड दिए हैं। नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार, भूटान सारे पड़ोसी हमारे प्रभाव से निकल चुके हैं। मोदी की विदेश नीति अब तक सबसे असफल भारतीय विदेशनीति है। ऐसा लगता है कि भारतीय विदेशनीति को चलाने के लिए हमारे पास कोई कूटनीतिक ब्रेन है ही नहीं। विदेश नीति चाय की दुकान की तरह नहीं चल सकती।
कूटनीति में विशेषणों का इस्तेमाल नहीं होता। विशेषण सिर्फ मजाक उड़ानें के लिए इस्तेमाल होते हैं। ट्रमृप जब महान कहता है तो यह कोई प्रशंसा नहीं एक डार्क ह्यूमर है, जिसे समझने की लिए थोड़ी बहुत कूटनीति आनी चाहिए।
अमेरिका का दक्षिण एशिया में नया ठिकाना तलाश मिशन: भारत-पाक चीन के करीब, नेपाल में उथल-पुथल बढ़ी, कूटनीतिक समीकरणों पर सवाल तेज
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