साल 1995 हरियाणा के इतिहास में एक ऐसे काले अध्याय के रूप में दर्ज है, जिसे आज भी लोग याद करके सिहर उठते हैं। यह वह समय था जब प्रकृति के कहर ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया था। 1 सितंबर से लेकर 4 सितंबर तक लगातार चार दिनों तक मूसलाधार बारिश होती रही। यह बारिश सामान्य मानसूनी बरसात नहीं थी, बल्कि इतनी भीषण और लगातार थी कि नदियाँ, नाले और तालाब सब उफान पर आ गए। देखते ही देखते खेत, घर, गाँव और कस्बे पानी में डूबने लगे और पूरा प्रदेश मानो एक सागर में तब्दील हो गया।
बाढ़ का असर इतना व्यापक था कि हरियाणा के 16 जिले इसकी चपेट में आ गए। आँकड़ों के अनुसार, 20 लाख 35 हजार एकड़ भूमि पर खड़ी फसल प्रभावित हुई, जिनमें से 16 लाख 55 हजार एकड़ क्षेत्र में फसल पूरी तरह नष्ट हो गई। यह नुकसान केवल अन्नदाता किसानों तक सीमित नहीं था, बल्कि पूरे प्रदेश की अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा पर इसका सीधा असर पड़ा।
2840 गाँव और हरियाणा के कई बड़े शहर बाढ़ से प्रभावित हुए। इन गाँवों और कस्बों में रहने वाली लगभग 28 लाख 87 हजार की आबादी बाढ़ की विभीषिका से जूझती रही। हजारों लोग बेघर हो गए, कई दिनों तक उन्हें खुले आसमान के नीचे या अस्थायी शिविरों में शरण लेनी पड़ी।
बाढ़ ने इंसानों के सिर से छत भी छीन ली। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, 2 लाख 2578 मकान क्षतिग्रस्त हो गए, जिनमें से कई तो पूरी तरह ढह गए। गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के सामने दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा हो गया।
सबसे बड़ी त्रासदी यह रही कि इस आपदा में 168 निर्दोष लोगों की जान चली गई। ये वे लोग थे जो समय पर बचाव कार्य न पहुँचने या तेज़ बहाव की चपेट में आने से काल का ग्रास बन गए। इसके अलावा, ग्रामीण जीवन की रीढ़ माने जाने वाले 3157 मवेशी भी बह गए या डूबकर मर गए। यह नुकसान किसानों के लिए किसी सदमे से कम नहीं था, क्योंकि पशुधन ही उनकी आय और जीवनयापन का महत्वपूर्ण साधन था।
उस समय की तस्वीरें और हालात इतने भयावह थे कि लोग आज भी उन्हें भुला नहीं पाए हैं। खेतों में खड़ी लहलहाती फसलें मात्र कुछ घंटों में पानी के समुद्र में तब्दील हो गईं। गाँवों में गली-गली पानी भर गया, घरों की नींवें हिल गईं और लोग जान बचाने के लिए पेड़ों, छतों और ऊँची जगहों पर शरण लेने लगे। बच्चों और बुजुर्गों की हालत सबसे ज्यादा खराब थी।
बाढ़ के कारण संचार और परिवहन व्यवस्था ठप हो गई थी। गाँवों का शहरों से संपर्क टूट गया, सड़कें और पुल बह गए। लोगों को खाने-पीने का सामान, पीने का साफ पानी और दवाइयाँ तक नहीं मिल पा रही थीं। कई जगहों पर तो लोग भूख और प्यास से बेहाल हो गए।
सरकारी स्तर पर बचाव और राहत कार्य शुरू तो किए गए, लेकिन इतनी बड़ी त्रासदी के सामने वे भी नाकाफी साबित हुए। सेना, पुलिस और स्वयंसेवी संगठनों ने मिलकर राहत कार्य किए। अनेक सामाजिक संस्थाएँ और साधारण लोग भी आगे आए और पीड़ितों की मदद की। जगह-जगह सामुदायिक रसोई चलाई गईं, राहत शिविर बनाए गए और दवाइयों की व्यवस्था की गई।
1995 की यह बाढ़ हरियाणा की जनता के लिए केवल प्राकृतिक आपदा नहीं थी, बल्कि यह उनकी हिम्मत, धैर्य और आपसी सहयोग की परीक्षा भी थी। इस बाढ़ ने लाखों परिवारों को बेघर कर दिया, किसानों की मेहनत को पानी में बहा दिया और अनगिनत लोगों की जिंदगी छीन ली।
आज, जब भी 1995 की बाढ़ की चर्चा होती है, तो यह केवल आँकड़ों तक सीमित नहीं रहती। यह उन असंख्य कहानियों की याद भी दिलाती है, जहाँ किसी माँ ने अपने बच्चे को गोद में लेकर पानी की धारा से बचाया, किसी किसान ने अपनी पूरी फसल डूबते हुए देखी, और किसी गाँव ने मिलकर कठिन परिस्थितियों में भी एक-दूसरे का सहारा बनकर इंसानियत की मिसाल कायम की।
Haryana 1995 Flood: 1995 की बाढ़ हरियाणा का सबसे बड़ा जल प्रलय
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