Raman Deep Kharyana :- Land Registry Documents: भारत में भूमि और संपत्ति से जुड़े लेन-देन में पारदर्शिता लाने के लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। हाल के वर्षों में जमीन की खरीद-फरोख्त में धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े के मामले तेजी से बढ़े हैं। एक ही संपत्ति को कई बार बेचना, फर्जी दस्तावेज बनाना और अवैध कब्जे जैसी घटनाओं ने आम नागरिकों को काफी परेशान किया है। इन सभी समस्याओं को देखते हुए भारत सरकार ने भूमि रजिस्ट्री प्रक्रिया में कुछ नए और सख्त नियम लागू किए हैं। अब संपत्ति की रजिस्ट्री कराते समय कुछ विशेष दस्तावेज अनिवार्य कर दिए गए हैं, जिनके बिना रजिस्ट्री की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकेगी।
ये नए नियम न केवल खरीदारों को सुरक्षा प्रदान करते हैं बल्कि विक्रेताओं के लिए भी कानूनी रूप से मजबूत प्रणाली तैयार करते हैं। डिजिटल इंडिया के तहत भूमि रजिस्ट्री को पूरी तरह ऑनलाइन और पारदर्शी बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे भ्रष्टाचार में कमी आएगी और बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी। आइए विस्तार से जानते हैं कि नए नियमों के तहत जमीन रजिस्ट्री के लिए कौन-कौन से दस्तावेज अनिवार्य हैं और यह प्रक्रिया कैसे काम करती है।
पैन कार्ड की अनिवार्यता और इसका महत्व
भूमि रजिस्ट्री की नई गाइडलाइन के अनुसार अब खरीदार और विक्रेता दोनों पक्षों को अपना पैन कार्ड प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा। यह प्रावधान वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए रखा गया है। पैन कार्ड के माध्यम से प्रत्येक लेन-देन की निगरानी संभव हो सकेगी और टैक्स चोरी पर अंकुश लगाया जा सकेगा। संपत्ति की खरीद-बिक्री एक बड़ा वित्तीय लेन-देन है और इसमें पैन कार्ड का उपयोग सरकार को इनकम टैक्स रिटर्न से मिलान करने में मदद करता है।
पैन कार्ड के साथ ही दोनों पक्षों की पासपोर्ट साइज फोटो भी जमा करनी होगी। यह फोटो रजिस्ट्री दस्तावेजों के साथ संलग्न की जाएगी ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार के विवाद की स्थिति में व्यक्ति की पहचान आसानी से की जा सके। इससे फर्जी नाम या गलत पहचान देकर संपत्ति हथियाने के मामलों में कमी आएगी। पैन कार्ड और फोटो की अनिवार्यता ने रजिस्ट्री प्रक्रिया को अधिक विश्वसनीय और कानूनी रूप से मजबूत बना दिया है।
आधार कार्ड से पहचान और पते का सत्यापन
आधार कार्ड अब भूमि रजिस्ट्री के लिए अनिवार्य दस्तावेज बन गया है। इसे पहचान और पते के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि आधार कार्ड बायोमेट्रिक डेटा से जुड़ा होता है, इसलिए इसमें धोखाधड़ी की संभावना बेहद कम होती है। रजिस्ट्री के समय खरीदार और विक्रेता दोनों को अपने आधार कार्ड की मूल प्रति और फोटोकॉपी दोनों प्रस्तुत करनी होगी। इससे यह सुनिश्चित होता है कि लेन-देन में शामिल दोनों व्यक्ति वास्तविक हैं और उनकी पहचान सत्यापित है।
आधार कार्ड का उपयोग पते की पुष्टि के लिए भी किया जाता है, जिससे यह साबित होता है कि व्यक्ति जो पता बता रहा है वह सही है। यह खासतौर पर तब महत्वपूर्ण है जब संपत्ति किसी दूसरे राज्य या शहर में हो। आधार की अनिवार्यता ने डुप्लिकेट पहचान पत्र या फर्जी दस्तावेजों के इस्तेमाल पर लगाम लगाई है। इसके अलावा, डिजिटल रजिस्ट्री प्रक्रिया में आधार से ई-केवाईसी भी संभव है, जिससे समय की बचत होती है और प्रक्रिया सरल बनती है।
संपत्ति से जुड़े भूमि दस्तावेज की आवश्यकता
नए नियमों के अनुसार संपत्ति की रजिस्ट्री के समय खसरा नंबर, खतौनी और भू-नक्शा जैसे दस्तावेज अनिवार्य रूप से प्रस्तुत करने होंगे। खसरा नंबर जमीन की पहचान संख्या है जो राजस्व विभाग द्वारा दी जाती है। खतौनी में जमीन के मालिक का नाम, क्षेत्रफल और अन्य विवरण दर्ज होते हैं। भू-नक्शा संपत्ति की भौगोलिक स्थिति और सीमाओं को दर्शाता है। ये सभी दस्तावेज मिलकर यह प्रमाणित करते हैं कि संपत्ति कानूनी रूप से वैध है और इसमें कोई विवाद नहीं है।
इन दस्तावेजों की जांच से यह भी सुनिश्चित होता है कि संपत्ति पर किसी अन्य व्यक्ति का दावा तो नहीं है। कई बार एक ही जमीन को अलग-अलग खसरा नंबर के साथ दो बार बेचने के मामले सामने आते हैं। नए नियमों के तहत रजिस्ट्रार कार्यालय इन दस्तावेजों को राजस्व विभाग के रिकॉर्ड से मिलान करेगा। यदि कोई विसंगति पाई जाती है तो रजिस्ट्री की प्रक्रिया रोक दी जाएगी। यह व्यवस्था खरीदारों को सुरक्षा प्रदान करती है और धोखाधड़ी से बचाती है।
विक्रय समझौता और लेन-देन का प्रमाण
रजिस्ट्री के समय खरीदार और विक्रेता के बीच हुए सेल एग्रीमेंट या विक्रय समझौते की कॉपी भी जमा करनी अनिवार्य है। यह एग्रीमेंट कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज है जिसमें संपत्ति की कीमत, भुगतान की शर्तें, संपत्ति का विवरण और दोनों पक्षों की सहमति का उल्लेख होता है। सेल एग्रीमेंट को नोटरी द्वारा सत्यापित कराना भी आवश्यक है। यह दस्तावेज भविष्य में किसी भी कानूनी विवाद की स्थिति में मजबूत सबूत के रूप में काम करता है।
सेल एग्रीमेंट में उल्लिखित जानकारी रजिस्ट्री दस्तावेजों से मेल खानी चाहिए। यदि कोई अंतर पाया जाता है तो रजिस्ट्रार इसे अस्वीकार कर सकता है। इस एग्रीमेंट के साथ भुगतान की रसीदें, बैंक स्टेटमेंट या चेक की कॉपी भी संलग्न करनी होती है। यह वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और काले धन के उपयोग पर अंकुश लगाता है। सेल एग्रीमेंट की अनिवार्यता ने संपत्ति लेन-देन को अधिक पारदर्शी और विश्वसनीय बनाया है।
संपत्ति कर और सरकारी देनदारी की रसीदें
यदि संबंधित संपत्ति पर कोई संपत्ति कर या अन्य सरकारी देनदारी बकाया है, तो उसके भुगतान की रसीद भी रजिस्ट्री के समय प्रस्तुत करनी होगी। कई बार खरीदार को बाद में पता चलता है कि उसने जो संपत्ति खरीदी है उस पर कई वर्षों का टैक्स बकाया है। इस स्थिति में खरीदार को उस बकाया का भुगतान करना पड़ता है। नए नियमों के तहत अब यह सुनिश्चित किया जाता है कि संपत्ति पर कोई बकाया न हो और सभी सरकारी देनदारियां चुकाई गई हों।
टैक्स रसीद के अलावा यदि संपत्ति पर कोई बैंक लोन या बंधक है तो उसका एनओसी (No Objection Certificate) भी आवश्यक है। बिना एनओसी के रजिस्ट्री नहीं हो सकती। यह प्रावधान खरीदार को भविष्य में किसी भी कानूनी झंझट से बचाता है। सभी वित्तीय देनदारियों का निपटान होने के बाद ही संपत्ति का स्वामित्व पूरी तरह खरीदार को मिलता है। यह प्रक्रिया भले ही थोड़ी लंबी लगे लेकिन यह खरीदार की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है।
डिजिटल प्रक्रिया से समय और धन की बचत
सरकार ने भूमि रजिस्ट्री को पूरी तरह डिजिटल बनाने का फैसला किया है। अब राज्यों में ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से रजिस्ट्री की जा सकती है। इसके लिए तहसील या रजिस्ट्री कार्यालय के बार-बार चक्कर लगाने की जरूरत नहीं है। चालान जनरेट करने से लेकर दस्तावेज अपलोड करने, शुल्क भुगतान और अपॉइंटमेंट बुक करने तक सभी काम घर बैठे किए जा सकते हैं। डिजिटल प्रक्रिया से न केवल समय की बचत होती है बल्कि पारदर्शिता भी बढ़ती है।
डिजिटलीकरण के कारण अब दस्तावेजों में हेरफेर की संभावना लगभग खत्म हो गई है। सभी रिकॉर्ड सरकारी सर्वर पर सुरक्षित रहते हैं और इन्हें कभी भी ऑनलाइन वेरिफाई किया जा सकता है। इससे बिचौलियों और दलालों की भूमिका खत्म हो रही है और भ्रष्टाचार में कमी आ रही है। कई राज्यों में ई-रजिस्ट्री सुविधा शुरू हो चुकी है जहां वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए रजिस्ट्री पूरी की जा सकती है। यह व्यवस्था विशेष रूप से उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो किसी दूसरे शहर या देश में रहते हैं।
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